Bhishma Pitamah Death Bed Conversation with Lord Krishna

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 *भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले," पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव ... ?* *उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है" .... !* *कृष्ण चुप रहे .... !* *भीष्म ने पुनः कहा ,  "कुछ पूछूँ केशव .... ?* *बड़े अच्छे समय से आये हो .... !* *सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !!* *कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....!* *एक बात बताओ प्रभु !  तुम तो ईश्वर हो न .... ?* *कृष्ण ने बीच में ही टोका ,  "नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं ...  मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ... ईश्वर नहीं ...."* *भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े .... !  बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .... !! "* *कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले ....  " कहिये पितामह .... !"* *भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया !  इस युद्ध में ज...

Modi, CAA and Farmers Protests

शक्की होना उतनी बुरी बात नहीं है और न ही आक्रामक होना बुरी बात है.

लेकिन, इन दोनों का कॉम्बिनेशन बेहद खतरनाक होता है...!मतलब कि कोई शक्की भी हो और आक्रामक भी हो.

इस संबंध में एक कहानी बताना चाहूँगा...!

एक घर में एक बेहद ही छोटा परिवार रहता था... मतलब कि सिर्फ पति , पत्नी और एक 5-6 साल का बच्चा.

पति एक सामान्य पुरुष जैसा ही था जबकि पत्नी बेहद शक्की और आक्रामक स्वभाव की थी.

और, उसे हमेशा ऐसा लगता रहता था कि उसके पति का किसी से कोई अफेयर चल रहा है जबकि हकीकतन ऐसा कुछ भी नहीं था और पति बेहद शालीन व्यक्ति था.

खैर, एक दिन पति ऑफिस गया हुआ था और पत्नी मार्केट.

मार्केट से पत्नी लगभग 2-3 बजे लौट आई और घर का लॉक खोल कर जैसे ही घर के अंदर गई तो उसे शू केस के पास किसी महिला के सैंडिल दिखाई दिए.

सैंडिल देखते ही उसके मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा.और, चुपके से पूरे घर में उस सैंडिल वाली महिला को खोजने लगी.खोजते-खोजते जब वो महिला बैडरूम में गई तो... वहाँ उसे दो लोग सोए हुए दिखाई दिए.

चूंकि, वे दोनों कंबल ओढ़ के सो रहे थे इसीलिए ये उनका मुँह या शरीर तो नहीं देख पाई लेकिन.... कंबल के नीचे से उसे दो जोड़ी पैर नजर आए... जिसमें से एक जोड़ी पैर पुरुष के और एक जोड़ी पैर किसी महिला के थे.

ये देखते ही वो शक्की पत्नी कूद कर इस नतीजे पर पहुंच गई कि... हो न हो... सो रहा पुरुष उसका पति और सो रही महिला उसकी प्रेमिका है.

बस... उसने दोनों को सबक सिखाने के उद्देश्य से स्टोर रूम से एक लोहे का रॉड लाया और कंबल के ऊपर से ही दोनों जोड़ी पैर पर बरसाना शुरू कर दिया.

हालांकि, दोनों सोए व्यक्ति दर्द से चीखने लगे लेकिन वो गुस्से की मारी घर से बाहर निकल गया और मुख्य  दरवाजा बंद करके बाहर बैठ गई.

थोड़ी देर के बाद... देखती है कि उसका पति बाहर से हाथ में कुछ सामान लेकर आ रहा है.

पति को यूँ बाहर से आता देखकर वो आश्चर्य से भर गई..

तभी, उसके पति ने पास आकर पूछा कि... अरे, यहाँ क्यों बैठी हो अकेली ?

असल में मैं तुम्हें एक बात बताना भूल गया था कि... जब मैं ऑफिस पहुंचा तो तुम्हारे मम्मी-पापा का फोन आ गया कि हमलोग आपके यहाँ पहुंच रहे हैं इसीलिए मैं स्टेशन पर आकर उन्हें रिसीव कर लूँ.

तो, चूंकि तुम मार्केट गई हुई थी तो मैं स्टेशन जाकर उन्हें रिसीव कर लिया और घर ले आया.

यहाँ नास्ता पानी करवाने के बाद थकावट की वजह से उन्हें नींद आ रही थी तो मैने उन्हें अपने बेडरूम में सुला दिया और फिर ऑफिस चला गया.

ये सुनकर महिला के पैरों तले जमीन खिसक गई और वो दौड़ कर बेडरूम गई.जहाँ लोहे के रॉड के वार के कारण उसके मम्मी पापा के पैर कई जगह से टूट चुके थे और पूरा बेड लहूलुहान हो चुका था.

खैर, जैसे तैसे तुरत एम्बुलेंस बुलाकर उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया और बहुत मुश्किल से उनकी जान बच पाई.

इसीलिए, कभी भी आधे अधूरे जानकारी पर तुरत जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए... क्योंकि, उसमें लाभ से ज्यादा हानि की आशंका रहती है.

और तीनों कृषि कानूनों के वापस होने का घटनाक्रम भी कुछ ऐसा है । सोशल मीडिया के चाहे कितने भी बड़े मठाधीश हों, ब्लॉगर हो अथवा यू ट्यूबर हो...किसी के पास इससे ज्यादा जानकारी नही  है कि मोदी जी कल अचानक ही तीनो कानून को वापस ले लिए.

लेकिन, क्यों ले लिया... किसी को नहीं मालूम है.क्या किसी के पास कोई इंटेलिजेंस की इनपुट है ? या किसी और तरह की जानकारी है ???

सारे... विचार महज एक अंदाजा है जो कि सही भी हो सकती है और गलत भी.

तो, महज एक अंदाजे पर अनाप शनाप बोलने लगना क्या उचित है ???

बहुत से लोगो का कहना है कि... महज 400-500 असामाजिक लोगों के एक साल तक दिल्ली बॉर्डर को बंधक बनाए रखा और लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा...

जिससे मोदी जी नहीं निपट सके.

उसी तरह शाहीन बाग में भी हुआ था... जहाँ महज कुछ सौ लोगों ने दिल्ली का हाईवे जाम करके पानी पिला दिया था...!

तो, भाई... पानी जनता को पिला दिया था या मोदी जी को ???

चलो... मोदी जी नकारा हैं...लेकिन, आप तो काम के हो ??

400-500 लोगों के धरने वाले जगह पर आप 5000 हजार आदमी जाते और उन्हें मार-पीट के भगा देते ???

शाहीन बाग में भी ऐसा कर सकते थे कि.... तुमको धरना देना है या जो करना है वो करते रहो... लेकिन, हमारे लिए सड़क खाली करो क्योंकि हमको दिक्कत होती है इस धरने से.चाहे डकैत हो या बिलकिस... उन्होंने आपके इलाके में घुस कर इतने दिनों तक सड़क जाम रखा.

लेकिन, क्या आपको हिम्मत है कि आप उनकी बस्ती में घुस कर एक दिन भी सड़क जाम कर पाओ ???

आपमें गूदा ही नहीं है.

इसीलिए, अपनी कमजोरी छुपाने के लिए मोदी जैसा सॉफ्ट टारगेट खोजते हो क्योंकि वो आपको पलट कर जबाब नहीं देता.

जो कटेशर और निहंग जबाब देते हैं उनसे तो लड़ने के नाम से ही हवा निकल जाती है.और हाँ...

तीन कृषि कानूनों को वापस लेना इस देश के नागरिकों के लिए आंख खोलने वाला ज्ञान भी है कि जो बाहर निकला और जिसने लड़ाई लड़ी... उसने अपनी मनचाही चीज पाई.


लेकिन, जो घर के अंदर यह सोच कर बैठा रहा कि हमारा घर के अंदर बैठना इस बात का द्योतक है कि हम इस कानून के साथ हैं वह अपने आप को मूर्ख बना रहा था.


क्योंकि, चुप रहना सहमति नहीं होती बल्कि उसके लिए बाहर निकलकर आवाज बुलंद करनी पड़ती है.


महज 500 लोगों ने पूरे CAA कानून को बंधक बना रखा था.


दिल्ली की डेढ़ करोड़ की आबादी में से आप में से कितने लोगों ने वहां पहुंचकर आवाज बुलंद की कि हटो यहां से, हम कानून के साथ हैं ?  


शाहीन बाग भी कोरोना की वजह से हटा था, तुम्हारी वजह से नहीं ! 


क्योंकि, तुम तो रोज 4 किलोमीटर का चक्कर लगाकर अच्छे नागरिक बन कर काम पर जा रहे थे. 

उन चक्कर लगाने वालों में अगर 1% आदमी भी वहां पर खड़ा हो जाता तो शाहीनबाग 6 महीने पहले उठ चुका होता.


लेकिन, ऐसा न उस समय हुआ और न इस किसान आंदोलन के समय हुआ.


और हाँ.... 

चलते चलते एक बात और कि...


कल से खान्ग्रेस और इंदिरा के बहुत गुण गाये जा रहे हैं...


तो....


माना कि... इंदिरा गांधी में बहुत ताकत थी और उसने स्वर्ण मंदिर में टैंक घुसवा दी थी.

लेकिन, वही इंदिरा कभी फारूक अब्दुल्ला को छू तक नहीं पाई.


जबकि, मोदी ने अब्दुल्ला परिवार को 370 वापस मांगने लायक नहीं छोड़ा.


ये भी माना कि... इंदिरा ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे....

लेकिन, वो इंदिरा आजीवन कश्मीर को भारत से जोड़ नहीं पाई थी...

जबकि, मोदी ने एक झटके में के केंद्र शासित प्रदेश बना दिया कश्मीर को.


खनग्रेस राज में राममंदिर के फैसले से भी लोगों को डर लगता था कि न ही आये तो अच्छा है नहीं तो गृहयुद्ध हो जाएगा देश में.


जबकि... मोदी ने बिना एक बूंद खून बहाए ही पूरे गाजे बाजे के साथ मंदिर का भूमि पूजन करके दिखा दिया.


इसीलिए, निश्चिन्त रहे... क्योंकि, देश सुरक्षित हाथों में है.


नहीं तो पता लगेगा कि हम भी कहानी वाली उसी महिला की तरह.... उतावलेपन में अपने ही लोगों पर डंडा बरसाना शुरू कर दिया... 

और , अपने ही लोगों को लहूलुहान कर उसे हॉस्पिटल पहूंचा दिया.


और, बाद में बैठ के अपनी बेवकूफी पर रो रहे हैं..!


जय महाकाल...!!!

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